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बा॒हू मे॒ बल॑मिन्द्रि॒यꣳ हस्तौ॑ मे॒ कर्म॑ वी॒र्य᳖म्। आ॒त्मा क्ष॒त्रमुरो॒ मम॑ ॥७ ॥

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पद पाठ

बा॒हूऽइति॑ बा॒हू। मे॒। बल॑म्। इ॒न्द्रि॒यम्। हस्तौ॑। मे॒। कर्म॑। वी॒र्य᳖म्। आ॒त्मा। क्ष॒त्रम्। उरः॑। मम॑ ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:7


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (मे) मेरा (बलम्) बल और (इन्द्रियम्) धन (बाहू) भुजारूप (मे) मेरा (कर्म) कर्म और (वीर्य्यम्) पराक्रम (हस्तौ) हाथ रूप (मम) मेरा (आत्मा) स्वस्वरूप और (उरः) हृदय (क्षत्रम्) अति दुःख से रक्षा करनेहारा हो ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को योग्य है कि आत्मा, अन्तःकरण और बाहुओं के बल को उत्पन्न कर सुख बढ़ावें ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(बाहू) भुजौ (मे) मम (बलम्) (इन्द्रियम्) धनम् (हस्तौ) (मे) (कर्म) (वीर्य्यम्) पराक्रमः (आत्मा) स्वयम्भूर्जीवः (क्षत्रम्) क्षताद् रक्षकम् (उरः) हृदयम् (मम) ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! मे बलमिन्द्रियं बाहू मे कर्म वीर्य्यं हस्तौ ममात्मा उरो हृदयं च क्षत्रमस्तु ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषैरात्मान्तःकरणबाहुबलं विधाय सुखमुन्नेयम् ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी आत्मा, अंतःकरण व बाहुबल यांनी सुख वाढवावे.